Dr Aditi dev

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लेखनी प्रतियोगिता -30-May-2022

“गुनाह-ए-मोहब्बत”  

क्यू भीड़ में भी लगे तनहा सा,
सब कुछ होकर भी लगे अधूरा सा ।

है चारों तरफ़ शोर मेरे, मगर ,
तरसे दिल तुझे ही सुनने को ।

है ख़ामोशी मेरे दिल में दबीं,
है आस तुझसे ही मिलने को ।

असर है कुछ इस क़दर गहरा ,
तेरा ग़ुस्सा भी लगे प्यार मुझको ।

महफ़िल में रहते है छुपाए ग़म को,
ज़िक्र ना करते तेरा किसी से हम तो ।

रोता है दिल अकेले में कुछ यूँ,
खो बैठे हो जैसे अपनी ही रूह को।

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10 Comments

Shnaya

31-May-2022 09:24 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Shrishti pandey

31-May-2022 09:26 AM

Nice

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Abhinav ji

31-May-2022 08:44 AM

Nice👍

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